"गुरु" by Aryaman Kumar


गुरुर्ब्रह्मा  गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो  महेश्वरः ।
गुरुरेव  परं  ब्रह्म  तस्मै  श्रीगुरवे  नमः ॥१॥

गुरु। यह शब्द जीवन में सबसे अधिक मान्यता और अहेमियत रखता है। हर इंसान को गुरु की अवीयशक्ता होती है। गुरु हमारी अध्यापिका और अध्यापक होते हैं। माता - पिता भी गुरु कहे जातें हैं। सदियों से गुरु-शिष्या परम्परा चली आ रही है। गुरु अपने शिष्या को ज्ञान देते हैं और शिष्या का ओडेश्या इस ज्ञान को अवशोषित करना है बिलकुल वैस जिस तरह बारिश की बूँदें एक छोटे पैड को जीवन देती हैं। एक मनुष्य के लिए सदा सर्वप्रथम अपने गुरु हैं और संसार में गुरु के कहे गए मार्ग पर चलकर, अपने कर्तव्य को निष्पादन करने से बड़ा कोई धर्म नहीं। हम सभी को यह कहानी पता है जब महादेव ने एक व्यक्ति को शार्प दिया था क्योंकि उसने अपने गुरु को प्रणाम नहीं किया जब कि वह बेचारा तो शिव की भक्ति में ही लीन था!

अब जब स्वयं भगवान ने गुरु को सबसे ऊँच पदवी दी है, तो हम मान सकते हैं कि गुरु भगवान का ही tरूप हैं।
-
आर्यमन कुमार
११-जी



Comments

Popular posts from this blog

Behind the name: 'Anika'

Behind the name: 'Kavya'

Miiraas - The Heritage Club